किस किस तरह छुपाऊ
अब मै तूम्हे
मेरी मुस्कान मे भी तुम
नजर आने लगे
इतना शौक मोहब्बत का
क्यो पालते हो जनाब
की सांस आ न सके
जान जा न सके
ये मौसमे ईश्क है
ये और भी खुश्क हो जाएगा
हमसे ना उलझिय जनाब
वरना दोबारा इश्क हो जाएगा
आपसे उलझना जैसे आदत बन गयी जनाब..
ना उलझे तो जुदाई की सजा
उलझे तो प्यार का नशा
फिक्र तो होगी ना पागल
तुम मोहब्बत बनते बनते
जान जो बन गये हो मेरी